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रावण-1 / शुभेश कर्ण

मैंने गौर से देखा
वह चारों तरफ मौजूद था

जो सिंहासन पर बैठा हुआ था
वह उसका सबसे कोमल
पर ख़ौफनाक चेहरा था

जो उसकी क्रूरता के विरुद्ध
तर्कपूर्ण ढंग से बोल रहा था
वह भी उसी का चेहरा था

वह जो अख़बारों में लिख रहा था
टेलीविजन पर इंटरव्यू ले-दे रहा था
जुलूस में शामिल था
हत्या कर रहा था
प्रवचन दे रहा था
छाती पीट-पीटकर कर रहा था विलाप
बाँट रहा था न्याय
गिड़गिड़ा रहा था कहीं और

कहीं डूबा हुआ था किसी के प्यार में।
हर जगह, हर अभिनय में
वह शामिल था ।

मैंने गौर से देखा
हर जिल्द हटाकर
मेरे चेहरे के नीचे दबा
उसका एक चेहरा
हँस रहा था मुझ पर ।