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रावण-2 / शुभेश कर्ण

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सहस्रों मुख से सहस्रों बातें
सहस्रों लोगों के समक्ष
वह एक साथ प्रकट करता है

सहस्रों लोग सहस्रों बातें सुनकर
भ्रम में पड़ जाते हैं

लोग समझ नहीं पाते हैं
सच क्या है और झूठ क्या

सच और झूठ में बझे हुए लोग
फिर उसके ही बढ़ाए हुए तर्क को
और बढ़ाने लगते हैं
इस तरह वह हर दृश्य से दूर
स्वयं को लोकतांत्रिक पद्धति से
बनाए रखता है ।