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राष्ट्रीय सूतक / अनुपम सिंह

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एक पूरा गाँव क़त्ल किया गया है 
एक पूरा देश ही सूतक में है 
लाशें बिखेर दी गई हैं 
सड़क के दाईं ओर 
कौन रोए किसके लिए 
जब कोई बचा ही नहीं है

ससुराल से लौटी हैं बेटियाँ 
सिर मुड़ा तर्पण दे रही हैं 
पिताओं को 
रसदार पेड़ों में घण्ट बन्धे हैं 
मातम में डूबी हाण्डियों में 
झलझलाती हैं पिताओं की डबडबाई आँखें 
चिल्लाकर घण्ट फोड़ देना चाहती हैं बेटियाँ 

मातम में डूबा हैं पूरा बाग़ 
मरी हुई माँएँ अपने दुधमुँहे बच्चे 
छाती से चिपटाए 
रोती हैं पेड़ों की ओट से 
तालाबों में उलटी उतराई हैं चारपाइयाँ
अपने पिताओं और भाइयों के
दाग लिए हैं बेटियाँ 

उनके चेहरे से मिट गए हैं भाव सारे
खपरैलों पर रोती बिल्लियाँ 
मुँह में दबाए अपने बच्चों को 
किसी और दिशा को जा रही हैं 
खलिहानों में कुत्ते और
खेतों में स्यारिनों का मातम है

फिर भी टूटता नहीं इस रात का सन्नाटा 
कानों में बजता है सांय-सांय
सुबह-सुबह घाटों पर बिखलती 
सिसकती, डरी हुई हैं बेटियाँ 
सूख रहे खूनों पर क़त्ली-बूटों की छाप 
दूर तक दिखाई देती है

बन्द कमरे में अकुलाहट है 
और बाहर डर से फूलती है सांस 
किस तरफ देखूँ
कम हो आँखों की जलन 
किस तरफ देखूँ कि 
आँखों का होना ज़रूरी लगे

उठ रहा है आग का बवण्डर 
इस छोर से उस छोर तक
फैल रही है आग 
पानी में उठ रही हैं तेज़ भँवरें 
एक भरी-पूरी नाव 
धीरे-धीरे डूब रही है 

जबकि मैंने धारण किया है गर्भ 
मेरी छातियों में दूध उतरा है 
मृत्यु की खुरदुरी जीभ चाटती है
दूध भरी छातियाँ मेरी
और फ़सलें चाट गया है
आसमान से उतरा टिड्डी-दल 

किस गोद में छुपाऊँ अपने बच्चों को 
कि चीख़ें न पहुँचे इनके 
मुलायम कानों तक 
बिस्तर पर किस ओर सुलाऊँ
सिरहाने से पैताने तक 
हर ओर जाल-सी बिछी हैं
उनकी घाती इच्छाएँ
उनके आँखो के गड्ढों में खून भरा है

बहने जो उम्र में बेटियों-सी थीं 
बेटियाँ जो बिन माओं की थीं 
जिनकी साइकिलों-सी रफ़्तार थी 
जो हवाओं के मुकाबिले तेज़ थीं 
गड़ती हैं उन क़त्ली आँखों में
रेत-सी 
उनकी पीठ के नीचे बिछाए गए हैं
नँगे तार बिजली के 
वे डूब रही हैं खून भरे गड्ढ़ों में

हर ओर चल रहा है सरकारी विज्ञापन 
’वियाग्रा’ की गोलियों पर
कुछ औरतें ललचाई हुई हैं 
कर रही हैं ज़ख़्मी एक-दूसरे की पीठ को 
वियाग्रा के नशे में पूरा गाँव डूबा है
यह पूरा देश ही अनचाहे की पैदाइश है ! 

किस तरफ देखूँ कि थम जाए उबकाई 
थोड़ी शर्म बची रहे 
किस तरफ देखूँ बची रहे चाह जीने की
किस तरफ देखूँ !!