भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राष्ट्र अनाथ नहीं था / सरोज कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:25, 24 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज कुमार |अनुवादक= |संग्रह=सुख च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे जहाँ बुलाया गया था
उसे वे अनाथालय कहते थे!
वहाँ मुझे खूब सारे बच्चे मिले,
बच्चे प्यारे-प्यारे थे!
बच्चे प्रसन्न थे,
बच्चों की प्रसन्नता
अनाथ नहीं थी!

बच्चे मुस्कराते थे,
बच्चों की मुस्कान
अनाथ नहीं थी!

बच्चों के पास कलम थे,
किताबें थीं,
उनके कलम और किताबें
अनाथ नहीं थी!

बच्चों ने गीत गाए,
उनके गीत अनाथ नहीं थे!

बच्चों कि आँखों में सपने थे,
बच्चों के सपने अनाथ नहीं थे!

अंत में बच्चों ने राष्ट्रवन्दना की,
उनका राष्ट्र अनाथ नहीं था!

जो राष्ट्र अनाथ नहीं होता
उसके बच्चे
कभी अनाथ नहीं होते!

मैं लौट आया हूँ!
जहाँ मुझे बुलाया गया था
उसे वे
अनाथालय कहते थे,
जहाँ से मैं लौटकर आया हूँ
वह अनाथालय नहीं था!
वह बच्चों कि फुलवारी थी,
फुलवारी के माली
निष्णात थे,
फुलवारी का आकाश
नीला और साफ था!