रास्ते जो हमेशा सहल ढूँढ़ते हैं,
हो–न–हो वो सराबों में जल ढूँढ़ते हैं।
जब भी लगता है अब इम्तहां है जरूरी,
उलझनें हम खड़ी करके हल ढूँढ़ते हैं।
जिनके चलने से हो जाएँ राहें मुअत्तर,
आदमी ऐसा हम आजकल ढूँढ़ते हैं।
बीज ऊसर में जो फेंकते हैं हमेशा,
कितनी शिद्दत से उसमें फ़सल ढूँढ़ते हैं।
धड़कनों से भरी बस्तियाँ छोड़ आए,
पत्थरों के नगर में गज़ल ढूँढ़ते हैं।