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"राह देखते हम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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कटता जाए शीश
 
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यहाँ हज़ारों बार,
 
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आहें नहीं
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आहें भी नहीं
 
निकली मुँह से भी
 
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चूकते नहीं वार।
 
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'''या उतरा आँगन'''
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'''कुसुमित यौवन,'''
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'''ज्यों निर्झर चंचल'''।
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अधर खिले
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जगे जड़-चेतन,
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अँगड़ाई ले
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बहा मन्द पवन
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सिंचित तन-मन।
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नीलम नभ
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धुँआँ पीकर मरा
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साँस-साँस अटकी
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हम न जागे
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हरित वसुंधरा
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द्रौपदी बना लूटी।
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16:38, 2 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण

62
तय किया था
हमने मिलकर
फूलों -सा खिलकर,
जुदा न होंगे
भूल गए हो तुम
राह देखते हम।
63
साँस -साँस में
चन्दन की खुशबू
याद बसी तुम्हारी,
रमी है ऐसे-
जैसे तन में बसे
प्राणों की संजीवनी।
64
जीवन-रण
कटता जाए शीश
यहाँ हज़ारों बार,
आहें भी नहीं
निकली मुँह से भी
चूकते नहीं वार।
65
सांध्य गगन
या उतरा आँगन
कुसुमित यौवन,
रूप तुम्हारा
बहता छल-छल
ज्यों निर्झर चंचल
66
अधर खिले
पिया मदिर मधु
जगे जड़-चेतन,
अँगड़ाई ले
बहा मन्द पवन
सिंचित तन-मन।
67
नीलम नभ
धुँआँ पीकर मरा
साँस-साँस अटकी
हम न जागे
हरित वसुंधरा
द्रौपदी बना लूटी।