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राह बदलती नहीं / अज्ञेय

 राह बदलती नहीं-प्यार ही सहसा मर जाता है,
संगी बुरे नहीं तुम-यदि नि:संग हमारा नाता है
स्वयंसिद्ध है बिछी हुई यह जीवन की हरियाली-
जब तक हम मत बुझें सोच कर-'वह पड़ाव आता है!'

रूपनारायणपुर (रेल में), 18 अक्टूबर, 1946