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राह भटका हुआ इंसान नज़र आता है / अभिषेक कुमार अम्बर

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राह भटका हुआ इंसान नज़र आता है
तेरी आँखों में तो तूफ़ान नज़र आता है।

पास से देखो तो मालूम पड़ेगा तुमको
काम बस दूर से आसान नज़र आता है।

इसको मालूम नहीं अपने वतन की सरहद
ये परिंदा अभी नादान नज़र आता है।

बस वही भूमि पे इंसान है कहने लायक
जिसको हर शख़्स में भगवान नज़र आता है।

आई जिस रोज़ से बेटी पे जवानी उसकी
बाप हर वक़्त परेशान नज़र आता है।

जबसे तुम छोड़ गए मुझको अकेला 'अम्बर'
शहर सारा मुझे वीरान नज़र आता है।