भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राह में क्षण सृजन का कहीं है पड़ा / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:29, 12 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात के खेत का स्वर सितारों-जड़ा
बीचियों में छलकती हुई झीलके
दीप सौ-सौ लिए चल रही है हवा
बांध ऊंचाइयां पंख में राजसी
स्वप्न में भी समुद्यत सजग है लवा
राह में क्षण सृजन का कहीं है पड़ा

व्योम लगता कि लिपिबद्ध तृणभूमि है
चांदनी से भरी दूब बजती जहां
व्योम लगता कि हस्ताक्षरित पल्लवी
पंखवाली परी ओस सजती जहां
ओढ़ हलका तिमिर शैली प्रहरी खड़ा