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राह में ठोकर का सामाँ हाथ मे‍ ख़ंजर लगे / पवनेन्द्र पवन

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राह में ठोकर का सामाँ हाथ में ख़ंजर लगे
और मंदिर में वही पत्थर मुझे शंकर लगे

आईना होता है चेहरा दिल का कैसे मान लूँ
भाल पर टीका लगा रावण भी पैग़म्बर लगे

कुछ नहीं आकाशगंगा इक छलावे के सिवा
चाँद से देखी गई धरती भी है अम्बर लगे

उस सवाली शख़्स की क़िस्मत भी यारो ख़ूब थी
मर गया भूखा तो उसकी याद में लंगर लगे

काँच के घर में नहीं रहता ‘पवन’ यह सोचकर
जाने कब किस ओर से आकर कोई पत्थर लगे