Last modified on 6 मई 2008, at 02:33

रिक्त जल अब रजत शंख... / कालिदास

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:33, 6 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=ऋतुसंहार‍ / कालिदास }} Category:संस्कृत :...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: ऋतुसंहार‍
»  रिक्त जल अब रजत शंख...
प्रिये ! आई शरद लो वर!

रिक्त जल अब रजत शंख

मृणाल से सित गौर उज्ज्वल

खंड शतशः व्याप्त दिशि दिशि

पवन वाहित शुभ्र बादल

व्योम नृप का व्यजन करते

चमर शत शत ज्यों लहर कर
प्रिये ! आई शरद लो वर!