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रिमझिम के फूल झरे / सोम ठाकुर

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रिमझिम के फूल झरे रात से
बूँदों के गुच्छे मारे मेघा

कल तक देखे है हर खेत ने
अनभीगे वे दिन मन मारकर
बिन बात अम्मा भी खुश हुई
हल- बैलों की नज़र उतारकर
उमस --उमस उमर -क़ैद काटकर
जाने क्या सगुन विचारे मेघा

पहली बौछारों -भीगी धरा
दाह बुझा नदिया की देह का
घुल-घुलकर धार -धार नीर में
मुँह मोड़े खारापन रेह का
चमक उठी आकाशें जो स्वयं
बिजली के रूप संवारे मेघा

लहराई जल- झालर इस तरह
रात- रात झूलों के नाम है
घिरकर घहराई जो घन -घटा
लगता दिन -दुपहर ही शाम है

दिशा -दिशा झूमझूम -झूमझूम
सागर का क़र्ज़ उतारे मेघा

क्षितिजों तक इंद्र -धनु तना कभी
उभरे है कभी स्वर्ण चित्र सा
बार-बार किरण -घुले रंग में
महके कुछ मौसम के इत्र -सा
खोजे जाने किस को जन्म से
जाने क्या नाम पुकारे मेघा?
बूँदों के गुच्छे मारे मेघा