Last modified on 28 जुलाई 2016, at 05:11

रिमझिम बरसे पनियाँ / अवधी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रिमझिम बरसे पनियाँ,
आवा चली धान रोपे धनियाँ।
लहरत बा तलवा में पनियाँ,
आवा चली धान रोपे धनियाँ।
सोने के थारी मं ज्योना परोसैं,
पिया कां जेंवाईं आईं धनियाँ।
झंझरे गेरुआ मं गंगा जल पनियाँ,
पिया कां घुटावैं आईं धनिया।
लौंगा-इलाची के बीरा जोरावैं,
पिया कां कूँचावैं आईं धनियाँ।
धान रोपि कर जब घर आयों,
नाच्यो गायो खुसी मनायो।
भरि जईहैं कोठिला ए धनियाँ,
आवा चली धान रोपै धनियाँ।