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"रिवायत / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर

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तेरे दीदार हेतु उफ़क पर पलकें बिछाये
  
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भेजा था चाँद को तुम्हारा हाल पूछने
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महीना बाद लौटा है फिर अमावस होकर
  
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तुम्हारे इंतजार में जीना ही रिवायत हो गयी है
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तेरे तसव्वुर को ओढ़ता, तेरे लम्स बिछाता हूँ
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मेरी नज़र टिकी है दरख़्त के उस पत्ते पर
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तेरे एहसास को सम्भाले वह अबतक झड़ा नहीं है
  
 
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21:57, 7 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

मेरी तन्हाइओं को तानकर तुम रूठ गयी
खींचके तन्हे लम्हें करवट बदल ली

बेसमय जी रहा हॅू बिना उम्र का
तेरे दीदार हेतु उफ़क पर पलकें बिछाये

भेजा था चाँद को तुम्हारा हाल पूछने
महीना बाद लौटा है फिर अमावस होकर

तुम्हारे इंतजार में जीना ही रिवायत हो गयी है
तेरे तसव्वुर को ओढ़ता, तेरे लम्स बिछाता हूँ

मेरी नज़र टिकी है दरख़्त के उस पत्ते पर
तेरे एहसास को सम्भाले वह अबतक झड़ा नहीं है