रिश्ते सीढ़ी हुए पतवार हुए
जबसे हम लोग समझदार हुए
सेज के फूल थे जो कल शब में
वो सहर में नज़र के ख़ार हुए
किसी भँवर में उतर गए हम तुम
लग रहा था कि अबके पार हुए
हम तो निकले थे बदलने दुनिया
अपने ही घर में शर्मसार हुए
इतने उलझे मेरे सभी रिश्ते
बैठा सुलझाने तार-तार हुए