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"रिश्ते / कविता किरण" के अवतरणों में अंतर

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उगलते रहते हैं।
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पर कभी भी जलकर भस्म नही होते
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सताते हैं जिंदगी भर
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किसी प्रेत की तरह!
 
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19:20, 31 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

रिश्ते!
गीली लकड़ी की तरह
सुलगते रहते हैं
सारी उम्र।

कड़वा कसैला धुँआ
उगलते रहते हैं।

पर कभी भी जलकर भस्म नही होते
ख़त्म नही होते।

सताते हैं जिंदगी भर
किसी प्रेत की तरह!