Last modified on 22 अक्टूबर 2020, at 00:09

रिश्तों के झुनझने / कमलेश कमल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:09, 22 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश कमल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रिश्तों के झुनझुने
यूँ ही नहीं छूटते
न छूटने ही देते हैं
इनका बजते रहना
एक उपक्रम भर नहीं होता
होता है एक
आश्वासन भी
जिसको सुन
किलक उठता है
किसी कमजोर क्षण
में दुबका हुआ मन
फ़िर नहीं ढूँढता यह
ज़ज़्बात के धागे का
उलझा दूसरा सिरा
न ही देख पाता
रेहन पर रखे रिश्ते
या फिर इसके
ज़हीन और महीन जुगत
ये तो लोरी हैं
अलसाती ख़्वाबों के
जिसे सुन आती है
एक पुरसुकून नींद
इन्हें बजने ही दो!