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रुखसाना का घर-2 / अनिता भारती

रुखसाना
सामने कपड़े सिलने की
मशीन पड़ी है
ना जाने कितनी
जोड़ी सलवार कमीज
ब्लाऊज पेटीकोट
फ्राक बुशर्ट झबले
सिले है तुमने
तुम्हारे दरवाजे ना जाने कितनी बार
आई होगीं गांव भर की औरतें
यहां तक की चौधरी की बहु भी
तुम्हारे सिले कपड़े पहन
इतरा कर तारीफ करते हुए
किसी आशिक की तरह
तुम्हारे हाथ चुमकर डॉयलोग मारते हुए
मेरी जान क्या कपडें सिलती हो
पर अब धुआं-धुआं पलों को बटोर
कहती है निराश रुखसाना
शरणार्थी कैम्प के टैंट में पडी- पडी
मैं भी इस सिलाई मशीन की तरह ही हूँ
जंग खाई निर्जीव
मेरे जीवन का धागा टूट गया है
बाबीन है कि अपनी जगह फंस गई है
रुखसाना याद आती है मुझे रहीम की पंक्तियां
पर तुमसे कैसे कहूँ
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए