Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 23:25

रुचि पाय झवाय दई मेँहदी तेहिको रँग होत मनौ नगु है / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

रुचि पाय झवाय दई मेँहदी तेहिको रँग होत मनौ नगु है ।
अब ऎसे मे स्याम बोलावैँ भटू कहु जाँउ क्योँ पँकु भयो मगु है ।
अधरात अँधेरी न सूझै गली भनि जोय सी दूतिन को सँगु है ।
अब जांउ तो जात धुयो रँगु री रँगु राखौँ तो जात सबै रँगु है ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।