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रुलाकर चल दिए इक दिन / शैलेन्द्र

रुला कर चल दिये इक दिन
हँसी बन कर जो आये थे
चमन रो-रो के कहता है
कभी गुल मुस्कुराये थे

अगर दिल के ज़ुबां होती तो
ग़म कुछ कम तो हो जाता
उधर वो चुप इधर सीने में
हम तूफ़ां छुपाये थे
चमन रो-रो के कहता है ...

ये अच्छा था न हम कहते
किसी से दास्तां अपनी
समझ पाये न जब अपने
पराये तो पराये थे
चमन रो-रो के कहता है ...