Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
रूह का कर्ज़ साँसों पे भारी यहाँ
ज़िंदगी बन गयी है उधारी यहाँ
आप सजधज के क्यों आ गये सामने़
चढ़ गयी आइनों पे ख़ुमारी यहाँ
उनके गेसू के ख़म देखता रह गया
रात करवट बदलते गुज़ारी यहाँ
 
आप कहतें हैं नज़रों में है बाँकपन
चल रही क्यों जिगर पर कटारी यहाँ
 
ऐ ख़ुदा दुश्मनों से बचाये हमें
दोस्ती हर किसी से हमारी यहाँ
 
वो है पत्थर नहीं है किसी काम का
आरती भी उसी की उतारी यहाँ
 
लाख दुश्वारियाँ हैं पर ये भी सही
जिंदगी हर किसी को है प्यारी यहाँ
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits