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रूह / सुधा ओम ढींगरा

आतंकवादी हमला हो
या जातिवाद की लड़ाई
रूह
वापिस देश अपने
भाग है जाती.

हिस्सा बन उसका
हर पीड़ा
हर दर्द
हर चोट है खाती
वेदना से है कराहती .

और हर बार
ज़ख्मी
लुटी-पिटी
प्रताड़ित
परदेस लौट है आती .

रूह अड़िअल है
कहा नहीं मानती
डट है जाती
दाग देती है
कई प्रश्न नेताओं को.

हर बार
दुत्कारी है जाती
परदेसी हो-
परदेस में रहो
देश के कामों में टांग न अड़ाओ

देश हो या परदेस
ढीठ रूह भी
नेताओं को पकड़ने से-
बाज़ नहीं आती
उन्हें प्रश्न पूछती ही रहती है.

और हर बार
उसके प्रश्न
नेताओं के सामने परोसे-
मुर्गों के नीचे दब हैं जातें
शराब के प्यालों में बह हैं जातें.

नेता भी जानतें हैं
रूह ज़्यादा दिन
चिल्ला नहीं पाएगी
दो वक्त की रोटी, बच्चों की पढ़ाई
बाप की बीमारी, माँ की तिमारी में खो जायेगी.

उलझे प्रश्नों औ'
आतंकवाद के डर तले
रूह
फिर तड़पती
बिलखती रह जाए गी.