Last modified on 15 सितम्बर 2011, at 14:16

रेखाएं / भारती पंडित

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 15 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारती पंडित |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> हाथों की अनंत र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


हाथों की अनंत रेखाएं
चिकनी, समतल या कटी-फटी
कभी छोटी या लम्बी दौड़ती सी
हर रोज इन्हें मैं
गौर से देखा करती हूँ ..
जब मिल जाती है अनायास सफलता
तो इन लक्जीरों में एक
नई लकीर खोज लेती हूँ
कि भाग्य साथ दे रहा है
यही रेखाएं बना जाती है
संबल अक्सर मेरा
जब प्रयत्नों के बाद भी
असफलता हाथ आते है
तो इनमें ढूंढ लेती हूँ
एकाध कटी-फटी रेखा '
और बनाती हूँ पोजिटिव ऐटीट्यूड
कि किस्मत ही खराब है |