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रेजाणी पानी / पूनम सिंह

आज फिर किले के भीतर
कोई बियावान सन्नाटा चीखा था
मैंने सुनी थी वह चीख
ढही मेहराबों
दरकी दीवारों के बीच
पकड़ना चाहा था उसे
अतल अँधेरे के किसी कोने में
लेकिन गुम्बदों पर
चमगादड़ उड़ने लगे थे

मुझे याद आया
समुद्र तट पर उस दिन
उत्ताल लहरों के बीच
एक सोन मछली
बार-बार मुँह उठाकर
कुछ कहना चाह रही थी मुझसे
लेकिन लहरों का गर्जन
लील गया था
उस अनकहे को

तब से एक अजीब-सी
छटपटाहट है मेरे भीतर
समुद्र के शोर और
किले की नीरवता के बीच
मैं कहाँ हूँ.... किधर ?

गहराते समय के भीतर
एक ठोस सैलाब की तरह
मैं घुमड़ रही हूँ
पृथ्वी की आँखों में
उतर रही हूँ
सीढ़ियाँ लाँघती
किले के भीतरी तहखानों में
चढ़ रही हूँ बार-बार
समुद्र की उत्ताल लहरों के साथ
किले के सबसे ऊपरी गुम्बद पर

मेरी हाँफती साँसों में
पानी का शोर बढ़ने लगा है
मेरे थके पैरों में
टूटे घुँघरुओं की नीरवता व्याप्त है
कई-कई पर्वतों
कटिबंधों को पार कर
मैं ढलान की राह होती
विशाल मरूभूमि के अन्तस में
सुकून की साँस बन ठहरी हूँ

किले की नीरवता और
समुद्र के शोर से बहुत दूर
मैं यहाँ हूँ
इधर !
सदियों पुरानी मरूप्रदेश की
कुण्डी के भीतर
‘रेजाणी पानी’ बन

......
रेजाणी पानी - यह पानी कुण्डी में सहेजा जाता है। राजस्थान में हर जगह कुण्डियाँ हैं। पहाड़ पर बने किलों में, मंदिरों में, पहाड़ की तलहट्टियों पर, घर के आँगन में, गाँव में, रेत में, खेत में हर जगह कुण्डियाँ होती हैं। यह कुण्डी ठहरे पानी को स्वच्छ और निर्मल बनाये रखती है ।