कोसों पसरे मरुस्थल में
जब गूँजती है
किसी ग्वाले की टिचकार
रेत के धोरों से
उठती है रेतराग
और भर लेती है
समूचे आकाश को
अपनी बाहों में।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा
कोसों पसरे मरुस्थल में
जब गूँजती है
किसी ग्वाले की टिचकार
रेत के धोरों से
उठती है रेतराग
और भर लेती है
समूचे आकाश को
अपनी बाहों में।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा