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रेतीली कविता / निदा नवाज़

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(मेरी रेगिस्तानी झाड़ियों की सांवली चिड़िया)

मेरे पास एक रेगिस्तान है
मेरे पास कुछ रेगिस्तानी झाड़ियाँ हैं
और आंधी के समय
छुप जाता है इन ही झाड़ियों में
मेरा सूर्य
जिनका अपना एक रेगिस्तान हो
वे मृगत्रिष्णा के पीछे नहीं दौड़ते
वे बुनते हैं
रेत के एक एक कण से
सुन्हले सपने
मेरे रेगिस्तान में
उगते हैं कैकटस
गुनगुनाती है ख़ामोशी
और अधिकतर होते हैं घायल
मेरे सूर्य के पाँव

कभी-कभी दूर से
चिड़ियाएँ आकर
बस जाती हैं
मेरी रेगिस्तानी झाड़ियों में
उन चिड़ियों में से अब
बहुत सी प्रवासी हो गई हैं
बहुत ऊँची उड़ान में खो गई हैं
खूबसूरत चिड़ियाएँ एक रेगिस्तान में
भला क्योंकर रहने लगीं...
उसकी बात तो और है
वह जो शरणार्थी शिविर से
रात के एकांत में
स्वप्न-पंख लगाये
आज भी आती है
सरिता नाम की सांवली चिड़िया
मेरी रेगिस्तानी झाड़ियों में
उसके आते ही
आ जाती है हरियाली
खिल उठते हैं रेगिस्तानी फूल
कुछ समय के लिए
मेरी आँखों की पुतलियों की कोर से
जीवन का अँधेरा टल जाता है
और छा जाती है
मुस्कुराती धूप
छलांगें मारने लगता है
ख़ुशी से मेरा सूर्य
मैं यादों की इन्हीं झाड़ियों से
बनाता हूँ एक घरोंदा
भला रेगिस्तानी जीवन में
कब बसते हैं घर
बनते हैं केवल
सपनों के सिसकते हुए खण्डहर
उन्हीं खण्डहरों से फूटते हैं
रूपक, उपमा और प्रतीक के अंकुर
और अक्षरों, शब्दों, वाक्यों की
रंग-बिरंगी कलियाँ
जिनसे मैं तराशता हूँ
रेतीले यथार्थ का सुंदर सा रूप
संधर्ष की चेतना, एक रेतीली कविता
शरणार्थी शिविर में रहने वाली
अपनी सांवली चिड़िया के लिए
और उन सभी फूलों में जन्मे
फूल-विचार लोगों के लिए
जो निर्वासन में झेलते हैं
रेत के एक एक दहकते
कण का ताप
पतझड़ में गिरने वाले
चिनार के पत्तों की तरह.