परछाइयाँ कोंपलों से
अपने रंगों को अभी तक समेटती हैं
और गीतों के बारे में चिन्तित हैं
मैं तुम्हें एक आवेग की तरह
ओझल होते देखता हूँ
या फिर मेरे अवसाद पर एक काँपते ज़ख़्म की मानिन्द गिरते
ख़ुशियाँ तुम्हारे आँसुओं में सो रही हैं
और भोर तुमसे गुज़र कर ही होती है ।
रचनाकाल : 21 अगस्त 2000
अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस