भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोकहिं जौं तो अमंगल होय / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:40, 14 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }}<poem>रोकहिं जौं तो अमंगल हो…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोकहिं जौं तो अमंगल होय, औ प्रेम नसै जै कहैं पिय जाइए।
जौं कहैं जाहु न तौ प्रभुता, जौ कछु न तौ सनेह नसाइए।
जौं 'हरिचंद' कहै तुम्हरे बिन जीहै न, तौ यह क्यों पतिआईए।
तासौं पयान समै तुम्हरे, हम का कहैं आपै हमें समझाइए।