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रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-ना-शाद हैं हम / क़लक़

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रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-ना-शाद हैं हम
परवरिश-याफ़्ता-ए-ख़ाना-ए-सय्याद हैं हम

क़ैद से भी न रिहा हो के हवा कुछ दिलशाद
मुब्तला-ए-ग़म-ए-तनहाई-ए-सय्याद हैं हम

क़द्र अपनी न जहाँ में हुई बा-वस्फ़-कमाल
सिफ़त-ए-बू-ए-गुल इस बाग़ में बर्बाद हैं हम

हम शिकायत नहीं कुछ करते तुम्हीं मुंसिफ हो
वाजिबुर-रहम हैं या क़ाबिल-ए-बे-दाद हैं हम

हम समझते हैं पढ़ाई हुई बातें न करो
तिफ़्ल-ए-मकतब हो तुम ऐ जाँ अभी उस्ताद हैं हम