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रोज़ भरा है रोज़नामचा हत्यारों के बीच / ज्ञान प्रकाश विवेक

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रोज़ भरा है रोज़नामचा हत्यारों के बीच
खड़ा हुआ हूँ बिजली की नंगी तारों के बीच

कल नेता जी मेरे शहर में आकर बाँट गए-
रोज़गार के मीठे सपने बेकारों के बीच

महानगर में एक मरे या मरें हज़ारों लोग
मौत सभी को खा जाती है अख़बारों की बीच

हैरानी तो ये है कि नंगे हैं जिसके पाँव
अपना रस्ता बना रहा है अंगारों के बीच