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रोटी नईंयाँ पानी नईंयाँ / महेश कटारे सुगम

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रोटी नईंयाँ पानी नईंयाँ
छप्पर नईंयाँ छानी नईंयाँ

हम तौ गंवई गाँव के ठैरे
चंट,चतुर,और ज्ञानी नईंयाँ

जीवे खों तौ सब जी रये हैं
जीवे में आसानी नईंयाँ

सींचौ खूब पसीना हमनें
ख़ुशी मनौ हरयानी नईंयाँ

किसा,कहानी को कै रऔ अब
दादी मर गईं नानी नईंयाँ

काल मिली तौ हती ज़िन्दगी
मनौ सुगम बतयानी नईंयाँ