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रोता है इस अँधेरे में इक रोशनियों का शहर / शक्ति बारैठ

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रोता है इस अँधेरे में
इक रोशनियों का शहर
जहाँ धुप नहीं उगती
जहाँ शाम नहीं होती।
 
कोहरे की मर्र्मत होती है,
जहाँ काले पर्दे धुलते है
रंग अंधेरों का रोजाना
दो बार पुताया जाता है।
 
आंसू के पीपे तारकोल में
तब तक मिलवाये जाते है
जब तक की कोई पिघल पड़े
दो आँसू और मिलाने को।
 
टोपी वाले जोकर से
तमगे लगवाये जाते है
कोवों की खालें बीनकर के
कुर्ते सिलवाए जाते है
वो शहरे दीवानें ऐसे है
जहाँ काले दीप जलाये जाते है
अब शहर-ए-फिजां कुछ ऐसी है
जहाँ धूप नहीं उगती
जहाँ शाम नहीं होती।