भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोशनाई / किरण मल्होत्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
दुःखों की स्याही
फैल जाए अगर
देती केवल कालिमा

और यही कहीं अगर
कलम में भर ली जाए
करती रोशन

आने वाली पीढियाँ
दीप-सी प्रज्जवलित
आभामान

प्रकाश पुंज-सी
बन कर रोशनाई