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रोशनी से दिल का रिश्ता टूटता है / राम मेश्राम

रोशनी से दिल का रिश्ता टूटता है
हाय, किरणों का शजर भी सूखता है

जी रहा है सिर्फ़ कुदरत की बदौलत
गाँव अँधियारे में हर दिन डूबता है

सब फ़िदा हैं आज बिजली की अदा पर
कौन माटी के दिए को पूछता है

यह बुढ़ापा है कि बचपन की मुहब्बत
दास्तानों की गली में ढूँढता है

किस ज़माने में हुआ बागी कबीरा
आज तक जो शायरी में गूँजता है