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रोशन हुई शिखर श्रृंखला / गुलाम अहमद ‘महजूर’

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मिटे तमस, होगा प्रकाश, सूरज ने ज्योति बिखेरी है
रोशन हुई शिखर श्रृंखला।
पहाड़ियों, पर्वत श्रृंगों पर फैली ज्योति घनेरी है
रोशन हुई शिखर श्रृंखला।

बाग़ों के ‘वारिल’ <ref>एक सौम्य शांतिप्रिय पक्षी</ref> ‘रींज़िलों’ <ref>एक आक्रामक पक्षी</ref> को कर देंगे मटियामेट,
चिन्ता छोड़ो बुलबुल, पंख खोल हवा से कर लो भेंट,
अब के बाद जगत में तेरी रीत चलेगी रस्म चले-
रोशन हुई शिखर श्रृंखला।

हद से भी ज़्यादा शाखाएँ पेड़ जो कभी फैलाएँ,
माली ऐसे पेड़ों की ही तराशता है शाखाएँ,
तू भी अपनी सोच को सीमाओं में रखना, ध्यान रहे-
रोशन हुई शिखर श्रृंखला।

गुलेलाला के फूल स्नेह से सिंची मशालें जलाएँगे
उनकी जोत से नभ को रोशन कर लेंगे दमकाएँगे
नरगिस अपने प्यालों में शबनम की मदिरा ढालेगी-
रोशन हुई शिखर श्रृंखला।

सूरजमुखी थाल मुहरों से सजा सजा भर भर लाया
प्यार के नभ से राशि राशि वैभव और सुख लेकर आया,
उसके स्वागत में गुलेलाला ने हरयल जलाया रे-
रोशन हुई शिखर श्रृंखला।

जब चिनार से नीड़ चील का तोड़, उतारा जाएगा,
पैदा होगी तब बुलबुल के बचने की कोई आशा,
‘पोशिनूल’ <ref>एक सुंदर नाज़ुक पक्षी</ref> भी होश सँभाले राहत की साँसें लेंगे-
रोशन हुई शिखर श्रृंखला।

शब्दार्थ
<references/>