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रौनकें थीं जहाँ में क्या-क्या कुछ / नासिर काज़मी

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रौनकें थीं जहाँ में क्या-क्या कुछ
लोग थे रफ़्तगाँ में क्या-क्या कुछ

अबकी फ़स्ल-ए-बहार से पहले
रंग थे गुलसिताँ में क्या-क्या कुछ

क्या कहूँ अब तुम्हें खिज़ाँ वालो
जल गया आशियाँ में क्या-क्या कुछ

दिल तिरे बाद सो गया वरना
शोर था इस मकाँ में क्या-क्या कुछ