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लक्ष्मी रिसा जही / ध्रुव कुमार वर्मा

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बीड़ी पीयत फुकुर फुकुर,
मत बइठव चौरा मां
खोर गली ला छोड़ तुहर
लक्ष्मी रिसा जही।

थमही अंधऊर कहूं
ठोक दुहू छाती ला।
चंदन अस महकही,
छुहू कहू माटी ला।
चूहिस पछीना ते
धरती हरिया जाही।
आंखी ला देख तुहर,
बादर करिया जाही।

बइठे घर खुसरा अस,
बोटोर बोटोर देखहू ते,
उत्ती में बेरा हा
ऊ के अंधरा जाही॥1॥

बइंहा के राहत ले
छंहा के कइथे सब।
एक सही सबो दिन हा,
काकर बर रइथे कब?

पथरा अस देह कहूं
बइठे बइठे घोर दुहू।
दुख मिलही पाछू फेर
दाल ला गिजोर दुहू।
करम के धरती ला
मत पारव परिया गा
धरम के गंगा हा
घलो सुखा जाही॥2॥

मत देखौ शहर कोती
बिजली के जोत ला।
मुँह जोहत देखत हे,
ओमन तुहर कोत ला।
कहूं तुमन सुनता हो जाहू
अपन गांव मां।
सरग के सुख घली,
लोटे लगही पांव मां।

तुमनला अड़हा कहइय्या
के हांसी हा,
देखौ, बिहानिया के
दिया कस बुझा जाही॥3॥