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लखमी का कुत्ता / सुन्दर कटारिया

दूसरी गाल़ मै लखमी का रौब कसूता था
ऊंह कै एक झबरू सा पाड़णिया कुत्ता था।
सारे गाम मै उसका रुक्का था
बैरी माणस मांस का भूखा था।
देख ताहीं जाबड़ी काढ़ लिया करता
एक आधे नै रोह्ज पाड़ लिया करता।
एक दिन मेरे साहमी आग्या
मेरा भी जी घबराग्या।
मनै थोड़ा सा मुहं खोल्या
हिम्मत करकै मैं बोल्या।
भाज ज्या अड़े तै जा अपणे घर।
कुत्ता बोल्या तन्नै कोन्या मेरा डर।
मै चोंक्या कुत्ता बोल्या या भोंक्या।
कुत्ता बोल्या चोंकै मत
चुप होज्या तू भौंक्कै मत।
मुहं हम भी खोल सकै सैं
जिब तम भोंक्को तो हम भी बोल सकै सैं।
म्हारे नाम पै तमनै खूब बट्टे लगाए
कुत्ते तो बणगे पर वफादारी नही कमा पाए।
मै बोल्या मेरी गैल्लां क्यूं फै रहया सै
खामैखाहं मन्नै कुत्ता क्यूं कह रह्या सै।
बोल्या थारे मै इन्सान्नां आल़ी बात के सै
अर म्हारे साहमी थारी औकात के सै।
लालच मै तम इसे घिरगे
अक म्हारे तै भी नीचै गिरगे।
दो टूकां मै सबर नही करते
मां बापां की कदर नही करते।
रपिये नै भगवान बताओ सो
माणस हो कै माणस नै खाऔ सो।
सीवर सड़क खम्बे बिजली के तार पचागे
पेड़ पौधे बाग बगीच्चे सब क्यांहे नै खागे।
भाई नै भाई तै पाड़ो सो
रोह्ज के बेरा कितनी गोद उजाड़ो सो।
सब सोने की थाल़ी चाहो सो
अर म्हारे नाम की गाल़ी चाहो सो।
हमनै थारा के बिगाड़ राख्या सै
ईब पागल माणस नै कुत्ता पाड़ राख्या सै।
जिसकी ना कोये दवाई सै ना टीका
अर भाई नै पाड़ ल्यूंगा जो म्हारी गाल़ मै फेर दीख्या।
तू मास्टर सै न्यू छोड़ दयूं सूं
पर एक बात मै भी जोड़ दयूं सूं।
जाकै बाल़का नै इन्सान बणा कदे वे भी भटकज्यां
अर ईब यहां तै सटक ज्या।
मै भी उडे तै सटक लिया
पर साची ए इन्सान इन्सानियत तै भटक लिया।
सांझ नै घर आकै लाग्या सोण
तो अन्तर सोचूं था अक कुत्ता कोण।