भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लग जा गले / राजा मेंहदी अली खान

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 18 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = राजा मेंहदी अली खान }} {{KKCatGeet}} <poem> लग जा गले के फिर य…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो,
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो ।
 
हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से
जी भर के देख लीजिये हमको करीब से
फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो |

पास आइए के हम नहीं आएँगे बार-बार
बाहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार-ज़ार
आँखों से फिर ये प्यार की बरसात हो न हो |