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लड़कियाँ / भास्कर चौधुरी

पहाड़ के पीछे गाँव से आती हैं
ये लड़कियाँ
पढ़ने जाती हैं गाँव से बारह कि०मी० दूर
              
लड़कियाँ सड़क पर पैदल चल रही है
कुछ सायकिल पर सवार है
कुछ खड़ी हैं
और वे जो बस का इंतज़ार कर रही हैं
ऊँची कक्षाओं में पढ़ती हैं...

दो चोटियों में लड़कियाँ
सफ़ेद सलवार और आसमानी रंग का कुर्ता पहने हैं
सफ़ेद दुपट्टे में
सड़क पर बिल्कुल सीधी चल रही हैं
सीधी है उनकी नज़र

ये लड़कियाँ धान से बदरा अलग करना जानती हैं
ये लड़कियाँ शाला के बाद अपनी माँओं के साथ पकी फसल काटती हैं
शाला के कपड़ों में

कार्तिक नहानें वाली ये लड़कियाँ भाइयों के लिए उपास रखती हैं
और रोपती है धान आसाढ़ में
ये लड़कियाँ छेरछेरा के दिन
आस-पास के मकानों से मांगकर चावल इकट्ठा करती हैं
फिर भात राँधती हैं
और इकट्ठे खाती हैं हँसती-खिलखिलाती
              
ये लड़कियाँ शाला जाना नहीं भूलती....
              
अपने पिता की चपटी नाक को
पहाड़ की तरह ऊँचा करेंगी ये लड़कियाँ