भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़ने की जब से ठान ली सच बात के लिए / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:59, 25 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' |संग्रह=प्यार का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लड़ने की जब से ठान ली सच बात के लिए
सौ आ़फतों का साथ है दिन-रात के लिए

अब है फ़जूल वक़्त कहाँ आदमी के पास
दर और कोई ढूँढ़िए जज़्बात के लिए

ऐसा नहीं कि लोग निभाते नहीं हैं साथ
आवाज़ दे के देख फ़सादात के लिए

इल्ज़ाम दीजिए न किसी एक शख़्स को
मुजरिम सभी हैं आज के हालात के लिए

उसने उसे फिज़ूल समझकर उड़ा दिया
बरबाद हो चला हूँ मैं जिस बात के लिए