भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी / इक़बाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लब<ref>अधर</ref> पे आती है दुआ<ref>प्रार्थना </ref> बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शमअ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी

दूर दुनिया का मेरे दम अँधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये

हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत<ref>शोभा</ref>
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म<ref>विद्या</ref> की शमअ से हो मुझको मोहब्बत या रब

हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत<ref>सहायता</ref> करना
दर्द-मंदों से ज़इफ़ों<ref>बूढ़ों</ref> से मोहब्बत करना

मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको

शब्दार्थ
<references/>