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लहरें और तूफ़ान / शकुन्त माथुर

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इन्तज़ार में रुके रहे शब्द
शायद अब भी वक़्त आ जाए
इन्तज़ार मेम रुके रहे अर्थ
शायद अब भी वक़्त आ जाए !

चित्रित न हो सका
वह दूर-दूर तक का सारा निर्मम यथार्थ
वर्तमान रोके रहा भविष्य का पानी
दो सुईयाँ टिक-टिक कर चलती रहीं
अविराम, सबका जायज़ा लिए
जागता रहा चौकीदार
शायद अब भी वक़्त आ जाए !

लाल होती रही आँख मटमैली
आरा चीरता रहा समर्थ विचार
देह जोड़ती रही
बादल के रंगों में रंगे मंसूबे
टूटा दिखा नीला आसमान,
टूटे टुकड़ों को
तराशता रहा ठहरा रहा स्वर्णकार
शायद अब भी वक़्त आ जाए !

डोरा सुई के साथ
सिए दे रहा था तह पर तह
संबंधों की श्रृंखला
और कुहरे का धुँधलका
उठती लहरें और तूफ़ान,
अचंभित और हैरान
प्रहरी आँकता रहा नाव पतवार
झाँकता रहा समुद्र का पारावार
शायद अब भी वक़्त आ जाए ।