लहौ सुख सब विधि भारतवासी।
विद्या कला जगत की सीखो, तजि आलस की फाँसी।
अपने देश, धरम, कुल समझो, छोड वृत्ति निज दासी।
पंचपीर की भगति छोडि, होवहु हरिचरन उपासी।
जग के और नरन सम होऊ, येऊ होय सबै गुन रासी।
लहौ सुख सब विधि भारतवासी।
विद्या कला जगत की सीखो, तजि आलस की फाँसी।
अपने देश, धरम, कुल समझो, छोड वृत्ति निज दासी।
पंचपीर की भगति छोडि, होवहु हरिचरन उपासी।
जग के और नरन सम होऊ, येऊ होय सबै गुन रासी।