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लह लह करै रे गभरू / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

नदी में पानी छलक रहा है और जौ खेतों में लहरा रहा है। विवाह करने के लिए दुलहा घोड़े पर सवार होकर चलता है। वह ससुराल पहुँचता है, लेकिन सँकरी गली होने के कारण वहाँ घोड़ा दौड़ने में असमर्थ है। वह इसकी शिकायत अपनी सास से करता है। सास उसे परामर्श देती है कि तुम अपने पराक्रम से अपना रास्ता बना लो। इसी में तुम्हारी परीक्षा और सफलता निर्भर है।

लह लह<ref>हरा भरा लहलहाता हुआ</ref> करै रे गभरू<ref>वह स्वस्थ नौजवान जिसकी मूँछें अभी आ रही हों</ref>, रे जब<ref>जौ; यव</ref> केरा<ref>का</ref> राम हे गछिया<ref>पेड़; गाछ</ref>।
छल छल करै रे गभरू, रे गँगाजल पनियाँ॥1॥
चलन चलन करै<ref>चलने को उद्यत</ref> रे राम, रामजी के लिलियो<ref>नीले रंग की घोड़ी; ‘लीली घोड़ी’- लोक कथाओं में प्रचलित एक प्रकार की घोड़ी, जो दुबली-पतली होने पर भी बहुत तेज चलती है</ref> रँग घोड़बा।
तोहरियो<ref>तुम्हारे</ref> गाम हे सासु, साँकरी गलिया॥2॥
कौने बाटे<ref>रास्ते से</ref> दौड़ैबै<ref>दौड़ाऊँगा</ref> हे सासु, चाचाजी के लिलियो रँग घोड़िया।
तोहरो छेको<ref>है</ref> हे बाबू, सोना मूठी<ref>वह छूरी, जिसकी बेंट सोने की हो</ref> छुरिया॥3॥
कटहोक<ref>काटो</ref> खिरिकिया<ref>खिड़की; घर पीछे का दरवाजा</ref> हो बाबू।
दौराबहो<ref>दौड़ाओ</ref> बाबाजी के लिलियो रँग घोड़िया॥4॥

शब्दार्थ
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