Last modified on 23 जुलाई 2011, at 02:24

"लाख चक्कर हों सुराही के, हमारा क्या है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
एक सिवा दिल की तसल्ली के, हमारा क्या है!
 
एक सिवा दिल की तसल्ली के, हमारा क्या है!
  
हँस के बहला भी लिया, रूठके तड़पा भी दिया
+
हँसके बहला भी लिया, रूठके तड़पा भी दिया
 
हम हैं मुहरे तेरी बाज़ी के, हमारा क्या है!
 
हम हैं मुहरे तेरी बाज़ी के, हमारा क्या है!
  
जब कहा उनसे, 'खिले आज तो होठों पे गुलाब'
+
जब कहा उनसे, 'खिले आज तो होँठों पे गुलाब'
हँस के बोले कि हैं माली के, हमारा क्या है!
+
हँसके बोले कि हैं माली के, हमारा क्या है!
 
+
 
<poem>
 
<poem>

02:24, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


लाख चक्कर हों सुराही के, हमारा क्या है!
हम तो प्यासे रहे पानी के, हमारा क्या है!

उनकी महफ़िल है, शराब उनकी है, प्याला उनका
हम तो दो घूँट चले पीके, हमारा क्या है!

उड़ रही है तेरे जूड़े की जो ख़ुशबू हर ओर
एक सिवा दिल की तसल्ली के, हमारा क्या है!

हँसके बहला भी लिया, रूठके तड़पा भी दिया
हम हैं मुहरे तेरी बाज़ी के, हमारा क्या है!

जब कहा उनसे, 'खिले आज तो होँठों पे गुलाब'
हँसके बोले कि हैं माली के, हमारा क्या है!