भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लागी रे बालेपन से नजरिया हो / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:53, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण
लागी रे बालेपन से नजरिया हो।
जब से लगी मोहे चैन ना आवे चितवत मारी कटरिया
कटरिया हो।
दिन नाहीं चैन रात नाहीं निंदिया नीको ना लागे सेजरिया
सेजरिया हो।
अपनो पराया छोड़ देलीं हम निरखीले चढ़के अटरिया
अटरिया हो।
द्विज महेन्द्र जीउ माने नाहीं हँसिहें त हँसिहें नगरिया
नगरिया हो।