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लाया था जो हमारे लिये जाम, पी गया / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"

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लाया था जो हमारे लिये जाम, पी गया
क़ासिद हमारे नाम का पैग़ाम पी गया

कुछ इस तरह सुनाई हमें उसने दास्ताँ
आया जो इख़्तिताम, तो अंजाम पी गया

पलकों पे कोई दीप जलाये तो किस तरह
आँसू बचे थे जो दिले-नाकाम पी गया

ले ले के नाम सबको पुकारा किया, मगर
साक़ी को देखिये कि मेरा नाम पी गया.

'महरिष', ये दर्द, रिंदे-बलानोश है कोई
सब दिन का चैन, रात का आराम पी गया.