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लालसा / शैलेन्द्र चौहान

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मैंने दुख को
दुर्दिन को
पीछे छोड़ा
मैंने मौन गहा
बातों से नाता तोड़ा

कुछ देर चला मैं
पीछे उनके
जिनने मुझको
भरमाया

फिर, वाम दिशा में मैंने
खुद को पाया
लाल सूर्य को मैंने
शीश नवाया

लालसा रही
प्रेम पाने की
दोनों हाथों तुमने
प्रेम लुटाया

मैंने तुमसे सीखा
तुमसे पाया
वह जो
जीवन-भर मैंने गाया।