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लिखूँगा, फिर-फिर लिखूँगा चीरकर कलेजा / राजकुमार कुंभज

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तुम्हारा आना याद रखूंगा
अपना जाना मगर देख नहीं सकूंगा
आना अमृत, जाना ज़हर
अगर लिखूंगा कविता कोई एक
तो लिखूंगा यही
कि धूप-धूप बारिश-बारिश
खो गई परछाईं को ढूँढती हुई परछाईं
तुम्हारा आना याद रखूंगा
तुम्हारा जाना मगर देख नहीं सकूंगा
लिखूंगा, फिर-फिर लिखूंगा, चीर कर कलेजा
प्रेम।